July 20, 2025
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हरिद्वार- जिंदगी हर किसी के लिए आसान नहीं होती। मुश्किल आने पर ज्यादातर लोग सहारा ढूंढने निकल पड़ते हैं। चंद ऐसे खुद्दार लोग होते हैं जो अपने बल पर संघर्ष का रास्ता अपनाते हैं। शिक्षानगरी रुड़की निवासी गुल मोहसिन भी उन्ही लोगों में से एक हैं। अमूमन लोग अपना घर चलाने के लिए मेहनत मजदूरी करते हैं लेकिन 62 साल के गुल मोहसिन घर चलाने के साथ-साथ अपनी जिंदगी का पहिया चलाने के लिए भी मेहनत करते हैं। शहर में घूमती हजारों ई-रिक्शाओं के बीच “उधार की सांस” यानी ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर ई-रिक्शा चलाते गुल मोहसिन अलग से नजर आ जाते हैं। उन्हें देखकर सवाल तो हर किसी के मन में उठता है हालांकि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसको दूसरों का दर्द जानने की फुर्सत है। वहीं श्रेष्ठ उत्तराखंड की टीम ने जब गुल मोहसिन से बात की तो जिंदगी की जद्दोजहद के असल मायने निकाल कर सामने आए। दोनों फेफड़े खराब होने के चलते गुल मोहसिन के लिए दो वक्त की रोटी के साथ-साथ अपनी सांसों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम भी करना पड़ता है। कम मुश्किल वाले लोग भी आपको सड़क किनारे हाथ फैलाते हुए नजर आ जाएंगे मगर गुल मोहसिन की खुद्दारी और मेहनतकशी के आगे मुश्किलें भी शर्मिंदा हैं। हालांकि सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की भीड़ में किसी ने आगे बढ़कर उनका दुख और दर्द बांटने की ज़हमत भी नहीं उठाई।

कोरोना काल से बदल गई जिंदगी

रुड़की के पश्चिमी अंबर तालाब निवासी गुल मोहसिन पहले तो टेलर का काम करते थे और कपड़े सिलकर अपने परिवार व बच्चों को पालते आए हैं। 2009 में उन्हें हार्ट अटैक आया मगर कोरोना काल के बाद तो जैसे जिंदगी परेशानियों से घिरती चली गई। दोनों फेफड़ें जवाब दे गए जिस कारण पैर से सिलाई मशीन चलाना तो दूर पैदल चलना भी मुश्किल हो गया। डॉक्टरों का कहना था कि जब तक जिंदगी है, सिलेंडर से ऑक्सीजन लेनी पड़ेगी। गुल मोहसिन ने हार नहीं मानी बल्कि 2 साल पहले लोन लेकर ई रिक्शा का हैंडल थामा। काम मंदा होने पर कुछ दिन पहले दो-तीन किस्त भी अदा नहीं कर पाए, क़िस्त चुकाने के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत कर रहे हैं, लेकिन किसी से कोई शिकवा नहीं। ऑक्सीजन सिलेंडर से सांस लेकर रूड़की की सड़कों पर ई-रिक्शा चलाकर जीवन यापन करने का प्रयास कर रहे हैं। तीन बेटे और दो बेटियां हैं, सब की शादी हो चुकी हैं। गुल मोहसिन अपनी पत्नी के साथ रहते हैं।

गुल मोहसिन बेशक खुद्दार इंसान हैं और खुद मेहनत कर अपनी रोजी-रोटी चल रहे हैं। रोजाना 400 से ₹500 तक की आमदनी में अपना और पत्नी के खाने-पीने के खर्च अलावा ई-रिक्शा के किस्त भी निकालना होती है। सिलेंडर और दवाइयां का इंतजाम करना रोटी से भी ज्यादा जरूरी है

 

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