
रुड़की। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर अंकुश लगाने की कोशिशें अब खुलेआम होती दिख रही हैं। रुड़की नगर निगम की पहली बोर्ड बैठक में भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा ने ऐसा ही कुछ कर दिखाया। बैठक शुरू होने से पहले ही मीडिया को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, जिससे पत्रकारों में भारी आक्रोश देखने को मिला। इस फैसले के खिलाफ स्थानीय पत्रकारों ने कड़ा विरोध जताया और बैठक का बहिष्कार कर दिया।
पत्रकारों को क्यों रोका गया?
रुड़की नगर निगम की पहली बोर्ड बैठक में शहर के विकास से जुड़े अहम मुद्दों पर चर्चा होनी थी। ऐसे में मीडिया की मौजूदगी लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता बनाए रखने के लिए जरूरी थी, लेकिन विधायक प्रदीप बत्रा ने पत्रकारों को बैठक में शामिल होने से रोक दिया। प्रशासन की इस कार्रवाई को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। आखिर मीडिया को दूर रखकर क्या छिपाने की कोशिश की जा रही है?
मीडिया का गुस्सा फूटा, बैठक का बहिष्कार
बैठक से बाहर किए जाने पर पत्रकारों ने कड़ा एतराज जताया। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सभी प्रतिनिधियों ने इसका विरोध करते हुए बैठक का बहिष्कार कर दिया। पत्रकारों का कहना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है और लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी।
प्रशासन और पुलिस सतर्क, बढ़ाई गई सुरक्षा
मीडिया की नाराजगी को देखते हुए मौके पर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी तैनात कर दिए गए। नगर निगम परिसर के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी गई ताकि कोई अप्रिय घटना न हो।
बत्रा की मंशा पर सवाल
इस फैसले ने विधायक प्रदीप बत्रा की मंशा पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह पारदर्शिता खत्म करने की साजिश है? क्या सरकार की नीतियों और कामकाज की आलोचना से बचने के लिए मीडिया पर रोक लगाई गई? या फिर नगर निगम की बैठकों में होने वाली अंदरूनी खींचतान को छिपाने की कोशिश थी?
क्या कहता है लोकतंत्र?
लोकतंत्र में जनता को हर सरकारी फैसले की जानकारी देने का काम मीडिया का होता है, लेकिन अगर सरकार या प्रशासन खुद ही मीडिया पर पाबंदी लगाने लगे तो यह जनता के हक पर सीधा हमला है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या आने वाले समय में अन्य नगर निगम बैठकों में भी इसी तरह मीडिया को बाहर रखा जाएगा?
विपक्ष ने साधा निशाना
मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध को लेकर विपक्षी दलों ने भी भाजपा पर हमला बोला है। कांग्रेस और अन्य पार्टी के नेताओं ने इसे लोकतंत्र का गला घोंटने की साजिश करार दिया और कहा कि भाजपा सरकार पारदर्शिता से डरती है।
आगे क्या?
अब देखना होगा कि प्रशासन इस मुद्दे पर क्या सफाई देता है और क्या पत्रकारों की नाराजगी के बाद नगर निगम अपना रुख बदलता है या नहीं। क्या भाजपा विधायक प्रदीप बत्रा इस फैसले पर पुनर्विचार करेंगे या फिर लोकतंत्र की आवाज को दबाने की यह कोशिश यूं ही जारी रहेगी?